बिखरता संस्कार टूटते परिवार जावेद अंसारी

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रिपोर्ट जीशान मेहदी ब्यूरो चीफ आजमगढ़

लेख जावेद अंसारी

कुछ वक्त पहले मैंने बेटियों की शादी की उम्र के बारे में लिखा था, अब शादी के बाद की ज़िंदगी के बारे में लिख रहा हूं, चंद लोग भी अमल कर लेंगे, तो लगेगा कि मेरी मेहनत सफ़ल हो गई!

शादी के अरमान, शादी की खुशियां, ढेरों प्यारे ख़्वाब, लड़की और उसके घर वाले ही नहीं देखते हैं,
यही ख्वाब लड़के और उसके घर वाले भी देखते हैं, यानि के जिस तरह से काबिल और अच्छे दामाद और अच्छे घर की ख्वाहिश लड़की वालों की होती है, उसी तरह संस्कारी और सलाहियत वाली बहू की ख्वाहिश लड़के वालों की भी होती है।
अगर लड़की लड़के और दोनों के घर वालों के मिजाजों में मैचिंग हो जाती है, तब तो बहुत बढ़िया,

पर अगर शादी के बाद दिल नहीं मिल पाते हैं, मिजाज़ नहीं मिल पाते हैं तो कई परिवारों में उथल पुथल मच जाती है! सारे अरमान सारे ख़्वाब एक झटके में टूट जाते हैं,,,और ऐसा दो वजह से होता है, एक लड़के वालों का दहेज़ के प्रति लालची होना,

और या फिर लड़की वालों का लड़की व उसके ससुराल के प्रति बहुत ज़्यादा दखल देना!
आज समझदार होने व पूरी तरह शिक्षित होने के बावजूद मियां बीवी और परिवारों में लड़ाइयां आम होती जा रही हैं, परिवारिक झगड़े, घर की चार दिवारी से निकल कर मोहल्ले तथा थाने व अदालत में पहुंचते जा रहे हैं।

और तलाक़ व अलगाव वाले केसेस बढ़ते जा रहे हैं! इस जगह पर एक बात 10 परसेंट ही सही बहुत संयम से लड़के को और उसके घर वालों को सोचनी व समझनी है, वो ये कि एक लड़की अपने मां बाप भाई बहन सहेलियां,और अपना घर तथा वहां का माहौल छोड़ कर उनके यहां रहने आई है, उसको अपने रंग में रंगने और यहां के माहौल में रचने बसने का वक्त दें, बहू को बेटी समझें हर हरकत पर तीखी नज़र ना रखें।

और इस जगह पर लड़की को 90 परसेंट बहुत ही संयम और धैर्य से ये बातें समझनी हैं कि उसका बचपना, उसकी नादानियां, उसकी नसमझियां, उसके भाई बहन और सहेलियों के ही साथ मायके में छूट चुकी हैं, अब नासमझी, व ज़बान दराजी तथा जिद की कोई गुंजाईश नहीं है, और तब तक तो कतई नहीं है, जब तक सब लोग एक दूसरे के मिजाज़ को अच्छी तरह से समझ न लें,
इसी जगह लड़की को एक बात का और बहुत अच्छी तरह से ध्यान रखने की ज़रूरत है वो ये कि सिर्फ़ अपने लिए ससुराल वालों का मिजाज़ बदलने से कहीं ज़्यादा बेहतर है कि वो अकेले अपना मिजाज़ ससुराल वालों के अनुरूप कर ले।

और अपने घर वालों से ससुराल की ज़्यादा बात न करे, और न ही मायके वालों का ज़्यादा दख़ल रखे।
यकीनन अगर लड़की और लड़की के घर वाले इस बात पर ध्यान देने लग जाएं।
तो काफ़ी हद तक घर टूटने से बच जाएं।

बातें बहुत बड़ी नहीं हैं,
सिर्फ़ इन पर अमल करने की ज़रूरत है।
अमल करने भर से दोनों ही परिवारों में खुशियों का ढेर लगा रहेगा।
जिसकी ज़रूरत दोनों परिवारों को होती है।

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