प्रधानमंत्री मोदी की डिग्री और अदालती फैसले पर जनहित में प्रश्न चिन्ह

वामिक़ हुसैन रिज़वी (प्रदेश अध्यक्ष) आल इंडिया मीडिया फाउंडेशन

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अदालती फैसले की मजम्मत या उनपर नुक्ताचीनी नहीं की जा सकती, लेकिन फैसलों से नाइत्तेफाकी (असहमति) जाहिर करने का हक संविधान ने सभी भारतीयों को दिया है। इधर कुछ सालों से कुछ अदालतों के ऐसे फैसले और आर्डर आए हैं जो कानून के माहिरीन के साथ-साथ आम लोगों की भी समझ में नहीं आए या यूं कहा जाए कि आम लोग और कानून के माहिरीन की बड़ी तादाद उन फैसलों से इत्तेफाक नहीं रखती।

 

इसीलिए गुजरात के सूरत की अदालत से डिफेमेशन के मामले में सूरत के ज्यूडीशियल मजिस्टेªट हरीश हंसमुख भाई वर्मा के जरिए राहुल गांधी को दी गई दो साल की सजा का फैसला किसी की समझ में नहीं आया और बड़ी तादाद में मुल्क के लोगों ने फैसले से नाइत्तेफाकी (असहमति) जाहिर की। एचएच वर्मा के फैसले पर बहस चल ही रही थी कि गुजरात से ही दूसरी खबर आई कि दिल्ली के वजीर-ए-आला अरविंद केजरीवाल के जरिए पीएम नरेन्द्र मोदी की डिग्री मागे जाने के सिलसिले में चीफ इंफारमेशन कमिशनर के आर्डर के खिलाफ गुजरात युनिवर्सिटी की अपील पर सुनवाई करते हुए गुजरात हाई कोर्ट के जज बीरेन वैष्णयों ने चीफ इंफारमेशन कमिशनर का आर्डर तो रद्द कर ही दिया साथ ही अरविंद केजरीवाल पर पच्चीस हजार का जुर्माना भी लगा दिया। यह आर्डर भी किसी की समझ में नहीं आ रहा है।

 

भारत ही नहीं दुनिया के बेश्तर (अधिकांश) मुल्कों में राष्ट्रपति और प्राइम मिनिस्टर बनने के लिए डिग्री होना या बहुत पढा-लिखा होना जरूरी नहीं है। सिर्फ इतनी शर्त है कि इन ओहदों पर फायज होने वाला शख्स जेहनी (मानसिक) एतबार से बीमार न हो, दीवालिया न हो चुका हो और बालिग हो। इसलिए पीएम नरेन्द्र मोदी के पास डिग्री है या नहीं इस बात की कोई अहमियत नहीं है। साथ ही यह भी हकीकत है कि हम जम्हूरी सिस्टम में रहते हैं। हमें अपने प्राइम मिनिस्टर की तालीमी लियाकत (शैक्षिक योग्यता) और डिग्री की तफसील जानने का पूरा हक है। अगर किसी प्राइम मिनिस्टर के पास डिग्री न हो तो उसे साफ कह देना चाहिए कि मेरी तालीमी लियाकत कितनी है और मेरे पास डिग्री है या नहीं, बात खत्म हो जाएगी लेकिन पीएम की डिग्री मांगने पर कोई अदालत किसी शख्स पर जुर्माना आयद कर दे यह कहां का इंसाफ है और ऐसे आर्डर का क्या जवाज (औचित्य) है।

 

यह सही है कि बीजेपी सदर की हैसियत से मौजूदा होम मिनिस्टर अमित शाह ने कई साल पहले बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस करके वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी की बीए और एमए की डिग्री दिखाई थी और कहा था कि अब यह मामला खत्म हो जाना चाहिए। इसके साथ यह भी एक तल्ख हकीकत है कि राजीव शुक्ला के ‘रूबरू’ प्रोग्राम में इंटरव्यू देते हुए खुद नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि ‘मैंने जल्दी ही घर छोड़ दिया था, इसलिए तालीम हासिल नहीं कर सका।’ राजीव ने सवाल किया कि आखिर कुछ तो तालीम होगी इसपर मोदी ने कहा था ‘हां हाई स्कूल तक। इस इंटरव्यू के अलावा मोदी ने एक पब्लिक मीटिंग में बड़े फख्र के साथ कहा था कि वह पढे-लिखे नहीं हैं फिर भी यहां (पीएम की कुर्सी) तक पहुंच गए और कामयाबी के साथ अपना काम कर रहे हैं। उनके यह दोनों बयानात इस बात का सुबूत हैं कि उन्होंने बाकायदा कोई तालीम हासिल नहीं की। अमित शाह ने उनकी जो डिग्री मीडिया को दिखाई थी उसकी फोटो कापी उन्होने नहीं दी थी। बीए की डिग्री के मुताबिक मोदी ने 1978 में दिल्ली युनिवर्सिटी से थर्ड डिवीजन में बीए पास किया था। उसके तीसरे साल गुजरात युनिवर्सिटी से एमए किया। अमित शाह ने भले ही डिग्री की कापी नहीं दी लेकिन प्रेस कांफ्रेंस में उसकी तस्वीर जरूर खींची गई। वहीं से पूरा मामला मशकूक (संदिग्ध) हो गया क्योकि दोनों डिग्रियां कम्प्यूटर से बनी थीं जबकि 1978 और अस्सी तक कम्प्यूटर आया ही नहीं था। वह हाथ से लिखी डिग्रियां मिला करती थी।

 

शक की दूसरी वजह यह थी कि एमए की डिग्री में सब्जेक्ट लिखा था ‘इंटायर पालीटिकल साइंस’ इस नाम का सब्जेक्ट भारत ही नहीं दुनिया में कहीं भी पढाया नहीं जाता।

अब सवाल यह है कि जब मुल्क का वजीर-ए-आजम बनने के लिए डिग्री होने की कोई शर्त ही नहीं है तो फिर सरकार और अदालत की जानिब से इतना बखेड़ा क्यों खड़ा किया गया, सिर्फ इतना कह दिया जाता कि मोदी के पास कोई डिग्री नहीं है तो हाई कोर्ट के जज साहब को नाराज होकर केजरीवाल पर जुर्माना भी न लगाना पड़ता। केजरीवाल ने दिल्ली असम्बली में पीएम नरेन्द्र मोदी को कम पढा-लिखा और बेपढा तक कह दिया और कहा कम पढा-लिखा आदमी अगर वजीर-ए-आजम बन जाता है तो अफसरान उससे गलत फैसले करा लेते हैं। केजरीवाल ने मोदी के कम पढे लिखे होने के सबूत में मोदी की ही कही हुई कई बातों का जिक्र किया। मसलन मोदी ने बिहार में कह दिया था कि बिहार तक्षशिला और नालंदा जैसे तालीमी मरकजों की धरती है। एक बार उन्होने यह भी कहा कि सिकंदर हर तरफ फतह का झण्डा लहराते हुए बिहार में गंगा के किनारे तक आ गया था। जहां बिहार के बहादुरों ने उसे शिकस्त दी थी। 2019 में पाकिस्तान पर की गई सर्जिकल स्ट्राइक पर बात करते हुए मोदी ने कह दिया था कि हमारे एयरफोर्स के जहाज जब सर्जिकल स्ट्राइक करने गए तो पाकिस्तान पर घने बादल थे इसलिए जहाज पाकिस्तानी रडार की पकड़ में नहीं आए। चंद महीने पहले उन्होने प्राम्पटर पर पढ कर तकरीर करते हुए ‘मिसेज’ को ‘एमआरएस’ पढा था। ऐसे उनके और भी कई बयानात हैं। केजरीवाल का कहना था कि वजीर-ए-आजम जब इस तरह की बातें करते हैं तो उससे देश की बदनामी होती है।

 

हम बात अदालती फैसलों की कर रहे हैं। जिनसे न सिर्फ नाइत्तेफाकी जाहिर की जा सकती है बल्कि सख्त एतराज भी उठाया जा सकता है कि कुछ जज साहबान को आखिर क्या हो गया है वह किसी के दबाव में काम करते हैं या जेहनी (मानसिक) तौर पर खुद ही ऐसे हैं। दिल्ली से लोक सभा एमपी प्रवेश वर्मा ने एलक्शन मीटिंग में मुसलमानों के खिलाफ बोलते हुए कहा था कि मुसलमानों का यही इलाज है कि उनका मुकम्मल बायकाट किया जाए। उसी मीटिंग में मरकजी वजीर अनुराग ठाकुर ने अवाम में नारा लगवाया था ‘गोली मारो सालों को’ यह मामला दिल्ली हाई कोर्ट तक पहुंचा तो हाई कोर्ट ने कहा कि एलक्शन मुहिम के दौरान सियासतदां इस किस्म की बातें करते रहते हैं।

 

इन दोनों ने भी हंसते हुए ऐसा कहा था इसलिए यह कोई संजीदा मामला नहीं है। लेकिन राहुल गांधी को इसी किस्म की बात करने के लिए गुजरात की अदालत ने दो साल की सजा दे दी और वजीर-ए-आजम की डिग्री मांगने पर गुजरात हाई कोर्ट के जस्टिस बीरेन वैष्णयो ने केजरीवाल पर पच्चीस हजार का जुर्माना लगा दिया। जैसे केजरीवाल ने डिग्री मांग कर मोदी की तौहीन की हो। ऐसे फैसलों से अदालतों पर सवाल उठना तो लाजमी है।

 

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