ये जुबां किसी ने खरीद ली, ये कलम किसी की गुलाम है

उ0प्र0 सराकरी सेवक आचरण निमावली के अनुसार शिक्षक नहीं बन सकते हैं पत्रकार शिक्षक बने पत्रकार दे रहे भ्रष्टाचार को बढ़ावा

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जुल्फेकार हुसैन (बाबू) ब्यूरो चीफ अमन की शान लखनऊ संस्करण

जौनपुर। …ये जुबां किसी ने खरीद ली, ये कलम किसी की गुलाम है। एक पत्रकार द्वारा एक सरकारी कर्मी या शिक्षक के लिए लिखी गईं ये पंक्तियां निश्चित ही देश में चौथे स्तम्भ की उपस्थिति का एहसास कराती है और बताती हैं कि कैसे जब एक सामान्य नागरिक सरकारी कर्मी बन जाता है तो उसे सरकारी नियमों को ना सिर्फ मानना है बल्कि उसका अक्षरश: पालन भी करना है,

 

 

क्योंकि उसने सरकारी कर्मी बनने की गोपनीयता की शपथ जो ली है जबकि पत्रकार इस लोकतंत्र का वह चौथा स्तम्भ है जो सरकार की गलत नीतियों के विरुद्ध आवाज मुखर करने व जागरूकता लाने का कार्य करता है। ऐसे में जबकि सरकारी सेवा नियमों के अनुसार कोई कर्मचारी सरकार की नीतियों की न तो आलोचना कर सकता है और न ही विरोध कर सकता है। वही उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक आचरण नियमावली में नियम संख्या छ(6) पर स्पष्ट वर्णित है कि सराकरी कर्मी किसी भी प्रकार से पत्रकार नहीं बन सकता तो फिर कैसे जनपद के विभिन्न सरकारी स्कूलों से मोटी सैलेरी उठाने वाले पत्रकारिता का रौब गालिब कर भ्रष्टाचार में लिप्त हैं,

 

जबकि शिक्षा विभाग व सूचना विभाग दोनों के अधिकारी आंखे मूंद बैठे हैं। मजेदार किंतु दुखद पहलू यह है कि ऐसे तथाकथित शिक्षक मय पत्रकार ना तो गुरुजी बनकर पढ़ाने के लिये स्कूल जाते हैं और ना ही सरकार की किसी गलत नीति के खिलाफ कभी कोई लेख लिखकर जागरूकता लाने का ही काम करते हैं।

 

 

ऐसे शिक्षक विद्यालय में पत्रकार होने का धौंस देकर पढ़ाने से भागते हैं तो वही पत्रकार बनकर महज चाटुकारिता करके उच्चाधिकारियों को प्रभाव में लेकर अपने अन्य व्यवसाय में लिप्त रहते हैं, कहना गलत ना होगा कि ऐसे तथाकथित शिक्षक मय पत्रकारों ने भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने में अपनी महती भूमिका निभाई है।

 

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