माफियाँ अतीक अहमद और अशरफ की हत्या सिस्टम पर भी खड़ा करती है कई सवाल

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डॉ. अजय कुमार मिश्रा
उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि पुरे देश में माफियाँ अतीक अहमद और अशरफ की हत्या जबरजस्त चर्चा का विषय बना हुआ है | इन दोनों की हत्या में शामिल तीनों हत्यारों की पुलिस रिमांड मिल चुकी है और अब आगे उनसे पूछ-ताछ करके चार्जशीट दायर की जाएगी |

 

अतीक अहमद के अब कई कारनामे भी सोशल मीडिया पर ट्रेंडिंग में चल रहें है | उनसे जुड़े लोगों के खिलाफ भी कार्यवाही के मूड में सरकार दिख भी रही है | कई मीडिया समूह ने अतीक की चार दशकों से अधिक समय की यात्रा का मानों सजीव प्रसारण ही कर दिया हो, जबकि किसी समय अनेकों मीडिया हाउस अतीक अहमद के खिलाफ खबर छापने से भी बचते रहे |

 

एक व्यक्ति जिसके आगे बड़े से बड़े लोग घुटने टेकने पर विवश हुए | एक दो नहीं बल्कि अनेकों आरोप और विवाद से इतने अधिक लोग पीड़ित रहे है की चार दशक से अधिक समय व्यतीत हो जाने के पश्चात् अब आरोप सिद्ध होना शुरू हुआ था | ऐसे में रहस्यमयी तरह से की गयी हत्या अनेकों संदेह और चर्चा को जन्म दे चुकी है, सभी के अपने – अपने दावे है | पर बात यह भी जरुरी है की जो कुछ भी हुआ उसकी जिम्मेदारी किसकी है ?

 

उत्तर प्रदेश का राजनैतिक इतिहास उठा कर देखियें जो भी यहाँ का राजा रहा है उसने अपनी पार्टी या चहेतों को छोड़ करके अन्य सभी माफियाओं और गुंडों पर कड़ा प्रहार किया है हां यहाँ यह स्पष्ट कर देना जरुरी है की वर्तमान मुख्यमंत्री जैसा त्वरित कार्यवाही का स्वरुप शायद ही किसी ने लिया हो | आप पिछले दो दशक के अंतर्गत सत्ता में रही पार्टियों का कार्यकाल देखियें सभी ने अपनी पार्टी को छोड़कर अन्य सभी पर कार्यवाही किया है | जबकि न्यायिक सिद्धांत यह कहता है कि किसी भी राजा का यह परम कर्तव्य है की वह सामान रूप से सभी अपराधियों पर कार्यवाही करें फिर चाहे वह पक्ष के हो या फिर विपक्ष |

 

सामान तरह के अपराध में दो अलग-अलग कार्यवाही निसंदेह जनता के मन में संदेह पैदा करती है, साथ ही उस राजा की छवि भी एक स्तर पर बढ़ने के पश्चात् या तो वही रुकी रहती है या फिर निचे आना शुरू हो जाती है |
कुछ बड़े एनकाउंटर / हत्या को आप देखियें उनमे मारे गए अपराधियों के साथ अधिकांश लोगों की कोई भी सहानभूति नहीं रही है पर आज भी कई ऐसे कुख्यात अपराधी खुले में घूम रहें है जिन्हें संभवतः जेल में होना चाहिए था या फिर …..!

 

अब दूसरे पहलू की बात करें किसी भी अपराधी को रिमांड लेने के लिए पुलिस न्यायालय का शरण लेती है और कुख्यात अपराधियों के मामलों में उन्हें कही भी लाने और ले जाने का एक पोर्टोकाल होता है और उनकी सुरक्षा में लगे लोगो की जिम्मेदारी बहुत बड़ी होती है | यदि उसी में खामी दिखाई दे तो निसंदेह अप्रत्यक्ष रूप से कई संदेह स्वतः जन्म लेते है | ऐसे में संविधान और न्याय दोनों का अपमान देखने को मिलता है | अतीक अहमद और अशरफ की हत्या के पश्चात उन दोनों की चर्चा करने के बजाय सिस्टम की चर्चा करना भी बेहद जरुरी है | इन चार दशकों में अतीक अहमद को अपराधी से कुख्यात अपराधी तक पहुचाने में न जाने कितनों ने मदद की होगी उनमे से कई ऐसे रहे होगे जो जिम्मेदार पोजीशन पर बैठे रहे होगे या आज भी बैठे होगे | पर उनका क्या ?

 

हम और आप बस इस बात से खुश हो लेते है की एक माफिया मारा गया चाहे फिर सही तरीके से या गलत तरीके से | पर क्या हमने इस बात पर बल दिया की इन अपराधियों को कुख्यात अपराधी बनाता कौन है ? कौन – कौन उनमे शामिल है | आज अतीक अहमद की चर्चा हो रही है कल किसी और की चर्चा होगी और यह इस आधार पर भी कहा जा सकता है की आजादी के पश्चात् कितने माफियाँ और अपराधी मारें गए यह सभी के संज्ञान में है | पर इन अपराधियों को पालने पोसने और आगे बढ़ाने वाले लोग हमेशा सुकून की जिन्दगी अच्छी सहूलियतों के साथ व्यतीत करते है और उनका समाज में एक अच्छा रुतबा भी रहता है | जिनके खिलाफ प्रत्यक्ष \ अप्रत्यक्ष तौर पर कोई कार्यवाही नहीं होती |

 

 

अब समय आ गया है की राजा न केवल सामान तरीके के अपराध में लिप्त सभी के खिलाफ बिना भेद-भाव के कार्यवाही करने का आदेश करे, बल्कि अपराधियों को सिस्टम में पालने वाले लोगों के खिलाफ भी कठोर से कठोर कार्यवाही करें, जिससे अतीक अहमद या विकास दुबे जैसे अपराधी पुनः किसी अन्य रूप में सामने न आये और यह तभी संभव होगा जबकि राजा बिना किसी भेदभाव के सभी कुख्यात अपराधियों के खिलाफ कठोर से कठोर कार्यवाही करने की प्रतिबद्धता को सामने लाये | यह जरुरी इसलिए भी है की सरकार जनता चुनती है ऐसे में राजा का कर्त्यव्य है की जनता के विश्वास को कमजोर न होने दे साथ ही संविधान के नियमों के अनुरूप न्यायिक प्रक्रिया सभी स्तर पर सामान रूप से लागू भी करें |

 

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