कचरा बटोर रहा है सड़को पर देश का भविष्य

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जौनपुर। छोटे बच्चों के शिक्षा से लेकर परवरिश तक के लिये सरकार तमाम योजनाएं चला रही है। जिसके प्रचार-प्रसार में नया सत्र शुरू होने से पहले ही लाखों रूपये पानी की तरह बहाये जातें है। लेकिन इसकी जिले स्तर पर धरातल स्थिति कुछ और ही है। अध्यापकों से लेकर शिक्षा विभाग के लगभग तमाम कर्मचारियों के साथ समाजसेवी बच्चों का रूख स्कूलों की तरफ ले चलने का महज प्रयास कर रहें है। लेकिन वह भी दिखावा ही साबित हो रहा है क्योंकि आज भी सड़कों पर बच्चों को भीख मांगने से लेकर कूड़ा उठाने, खिलौने आदि बेचते देखा जा रहा है। कहीं न कहीं इसके जिम्मेदार अभिभावक भी है जिन्हे अपने बच्चों के भविष्य की या तो कोई चिंता नहीं है और या तो पढ़ा न पाना उनकी मजबूरी बन रही है।

 

नया स्कूल सत्र शुरू हुए एक माह बीत चुका हैं लेकिन अभी भी नगर में कई बच्चे ऐसे हैं जिनका किसी भी स्कूल में दाखिला नहीं हुआ है। ऐसे कई बच्चे स्कूल जाने की उम्र में कचरा व भंगार बीन रहे हैं। इससे ये बच्चे शिक्षा से वंचित हो रहे हैं। नगर की गलियों व नालियों में ये भंगार बीनते हुए घूम रहे हैं लेकिन इन्हें स्कूल में दाखिला दिलाने के लिए जिम्मेदार कोई प्रयास नहीं कर रहे हैं।

 

 

इससे इन बच्चों का भविष्य अंधेरे में है। नगर के बस स्टैंड पर रोजाना इस तरह से तीन से चार बच्चे हाथ में थैली लेकर भंगार व कचरा बिनते दिख रहे हैं। इन्हें स्कूलों में दाखिला दिलाने व शिक्षा से जोड़ने के लिए जिम्मेदार कोई प्रयास नहीं कर रहे हैं। जबकि ये बच्चे इसी प्रकार रोजाना हाथों में थैली लेकर गली, कूचे, नालियों में प्लास्टिक, लोहे व अन्य भंगार को चुनकर अपना पेट भरकर भविष्य बिगाड़ रहे हैं। इनको किसी भी सामाजिक संगठनों द्वारा ना तो इन्हें स्कूल की ओर पहुंचाया जा रहा है और ना ही कोई समझाइश दी जा रही है। जबकि हर बच्चे को शिक्षा से जोड़ने के लिए सरकार लाखों-करोड़ों रुपए योजनाओं पर खर्च कर रही है।

 

 

इसके बाद भी बच्चे शिक्षा से बंचित हो रहे हैं। जागरूकता के अभाव में इन बच्चों के पालक इन्हें स्कूल नहीं भेजकर इनसे भंगार बिनने का काम करा रहे हैं। नगर में शिक्षा के प्रति जागरुकता फैलाने के लिए शासन स्तर पर कोई प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। यही वजह है कि इन जैसे कई बच्चे शिक्षा से बंचित होकर अपना भविष्य बिगाड़ रहे हैं। स्कूल चलो अभियान पर सरकार लाखों रुपए खर्च कर लोगों को शिक्षा के प्रति जागरूक करने का प्रयास कर रही हैं। लेकिन निवाली ब्लॉक में स्कूल चलो अभियान केवल दीवार लेखन तक सिमट कर रह गया है। नगर सहित ग्रामीण क्षेत्र में कई बच्चे जागरूकता के अभाव में शिक्षा से बंचित हो रहे हैं।

 

 

लेकिन नगर व क्षेत्र में जिम्मेदार लोगों की जागरुकता के लिए अभियान के तहत कुछ नहीं कर रहे हैं। जिससे स्कूल चलो अभियान नारों व कागजों तक सीमट कर रह गया है। इस प्रकार के बच्चों को शिक्षा से वंचित नहीं होना चाहिए। जल्द ही इनको लेकर शासन के मार्गदर्शन में हर वर्ग के बच्चों को स्कूल तक पहुंचाने का कार्य सरकार ने शिक्षा विभाग को सौंप रखा है। लेकिन अफसोस की नगर में इन जिम्मेदारियों का निर्वहन नहीं किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश सरकार ने मुख्यमंत्री बाल श्रमिक विद्या योजना 2023 को शुरू किया है। जिसके अर्न्तगत यूपी राज्य के श्रमिक परिवार के बच्चों के लिए श्रम विभाग योजना को संचालित कर रही है। योजना के तहत राज्य के श्रमिकों के बच्चों, दिव्यांग बच्चों व अनाथ बच्चों को शिक्षा प्रदान करने के लिए आर्थिक मदद प्रदान किया जा रहा है। लेकिन श्रम विभाग भी धनउगाही के लिये बच्चों की तलाश सड़कों पर न कर दुकानों कर करती पाई जाती है।

 

 

जहाँ से दुकानदारों को जिम्मेदार बताकर कुछ पर कार्यवाही व अधिकांश मामलों में जेब गर्म पर रफा-दफा कर दिया जाता है।

  • बच्चों को सरकारी स्कूलों में दिलाएं दाखिला

कचरा बिनने वाले बच्चों के पालक भी अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रहे हैं। इन बच्चों को भरपेट भोजन तक नहीं मिल पाता है। इससे ये बच्चे अपना पेट भरने के लिए दिनभर कचरे के ढेरों से खाली बोतल, प्लास्टिक व लोहा चुनकर भंगार में बेचकर अपना पेट भर रहे हैं।

 

 

जबकि पालक यदि इन्हें सरकारी स्कूल में दाखिला दिलाएं तो इन्हें मध्याह्न भोजन मिलेगा। साथ ही पुस्तकें सहित स्कूल की यूनिफॉर्म भी शासन की ओर से स्कूलों में बच्चों को दी जा रही है लेकिन इन बच्चों के पालक अपनी जिम्मेदार नहीं निभा रहे हैं साथ ही प्रशासनिक जिम्मेदार भी इन्हें जागरूक करने के लिए प्रयास नहीं कर पा रहे हैं।

 

  • पस्त हो रही बाल श्रमिक विद्या योजना

बाल श्रमिक विद्या योजना के अंतर्गत लड़कों को हर महीने 1000 रुपये और बालिकाओं को 1200रुपये की मदद राशि दिये जाने का प्राविधान है। इसके अलावा श्रमिक परिवार के बच्चे जो कि कक्षा 8वी, 9वी, 10वी में पास हो जायेंगे उन्हें उत्तर प्रदेश की सरकार द्वारा हर साल 6हजार रुपये की प्रोत्साहन राशि भी दी जाएगी। इन योजनाओं को जिम्मेदार किस ओर ले जा रहें है इसका नमूना नगर की सड़कों पर किसी भी समय देखा जा सकता है।

 

  • खुद के मनोरंजन व प्रतियोगिताओं तक सीमटी संस्थाएं

नगर की अधिकांश समाजसेवी संस्थाएं समय-समय पर एक से एक प्रतियोगिताओं के साथ खुद का मनोरंजन करतें पाये जातें है और समाचार पत्रों में छपने को आतुर रहतें है। लेकिन इनकी नजर नगर के इन मजलूमों पर नहीं पड़ती है। नगर में संचालित बड़ी-बड़ी संस्थाएं अक्सर किसी न किसी अवसर पर प्रतियोगिताएं कर ट्रस्ट की छवि सरकार तक पहुँचा कर लाभ लेतीं रहतीं है। कुछ एक संस्थाओं को छोड़ दिया जाये तो लगभग संस्थाएं जौनपुर में बड़े-बड़े कार्यक्रमों पर लाखों रूपये फूंक कर विदेशों तक मौज करनें जातें रहतें है। लेकिन समाज के भविष्य की ओर इनकी कोई सेवा दिखाई नहीं पड़ती है। यदि कभी कोई सेवा भाव जगता भी है तो हजार दिशाओं से फोटो शूट कर सोशल मीडिया पर दुकानें सजा दी जाती है

 

 

 

 

 

 

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