शहीदान-ए कर्बला के मासूम खून की लाज रखे कौम-डाॅ0मो0सलाउद्दीन

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जौनपुर। पैगम्बरे इस्लाम हजरत मोहम्मद सल्लल्लाह अलैह वसल्लम के प्यारे नेवासे आलीमोकाम हज़रत इमाम हुसैन और उनका परिवार व मासूम बच्चों द्वारा अल्लाह के कलाम की पवित्रता और शुचिता तथा मुहम्मद साहब के सब्र और संवेदना के पैगाम की रक्षा के लिए इंसानियत के दुश्मन यजीद और उसके जहन्नमी लश्कर की बर्बरता को अरब की चटियल व  रेतीले मैदान में जिस तरह से दस दिन तक भूखे प्यासे रहकर इस्लाम को राक्षसी प्रवृत्ति से निजात दिलाने के लिए बलिदान दिया गया, वह इतिहास में बहुत ही कम देखने को मिलता है।

 

व्यवहारिक जीवन में यदि एक दिन बिजली खराब हो जाती है तो लोग बिलबिलाने लगते हैं, जरा सोचिये किस हिम्मत और दिलेरी से मुहम्मद साहब के नवासों ने कर्बला के मैदान में दस दिन तक भूखे एवं प्यासे रहते हुए इंसानियत की भलाई के लिए जीवन के अंतिम क्षणों तक लड़े और अपना सर तो कटवा दिया लेकिन इंसानियत का सर झुकने नहीं दिया।

 

उक्त बातें शीराजे हिन्द सहयोग फाउण्डेशन के तत्वाधान में आयोजित ‘शहादत इमान आलीमोकाम’ विचार गोष्ठी में शहीदान-ए-कर्बला के मासूम खून की लाज रखने का आह्वान करते हुए शीराजे हिन्द सहयोग फाउण्डेशन के अध्यक्ष डाॅ0मोहम्मद सलाउद्दीन ने कहा कम से कम अब तो कुरआन को आलमारी की जीनत बनाये रखने के बजाय, हर माँ, बहन व बेटी को चाहिए कि वह खुद दिन की शुरूआत नमाज व अनुवाद सहित कुरआन को पढ़े और बच्चों को अपने पास बैठाकर उन्हें सुनाये, जब कुरआन की रौशनी में बच्चों की परवरिश होगी तो वही बच्चें समाज व मआसरा में इस्लाम की पहचान होंगे, आपके घरों में अल्लाह की बरकत नाजिल होगी, और आप हस्र के मौदान में हजरत फातिमा और बीबी जैनब के हुजूर में रुसवा होने से बच जायंेगी। विचार गोष्ठी में आबिद हुसैन, असरार खान, राज बहादुर मौर्य, शाहिदा शेख, ने विचार व्यक्त करते हुए मिशन-इमाम आलीमोकाम को जीवन में आत्मसात करने का संकल्प लिया। गोष्ठी का संचालन मिर्जा अतहर हुसैन ने किया।

 

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